सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक रंगों का त्योहार होली पूरे देश में बहुत उत्साह और धूमधाम से मनाया गया। होली को पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में ‘डोल जात्रा‘ या ‘बसंत उत्सव’ के नाम से भी जाना जाता है। पारंपरिक रूप से भारतीय कैलंडर के फाल्गुन माह की पूर्णिमा और ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार आमतौर पर मार्च की शुरुआत में मनाई जाने वाली होली, वसंत ऋतु के आगमन और सर्दियों के अंत का प्रतीक है।
होली का त्यौहार वसंत ऋतु का स्वागत करने के एक तरीके के रूप में भी मनाया जाता है, और इसे एक नई शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है जहां लोग अपने सभी अवरोधों को दूर कर सकते हैं और नई शुरुआत कर सकते हैं।
लगातार दो दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार की शुरुआत छोटी होली से होती है और उसके बाद दुल्हेंडी होती है, जिसे बड़ी होली या रंग वाली होली भी कहा जाता है। छोटी होली के अवसर पर होलिका दहन किया गया जिसका पौराणिक महत्व है।
पौराणिक कथाएं होली के जीवंत और रंगीन त्योहार के लिए प्रेरणा का काम करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद की कहानी से हुई है। होली पर भगवान विष्णु ने अपने समर्पित शिष्य प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप की अधर्मी योजनाओं से बचाया था। हिरण्यकश्यप अपने अलावा किसी अन्य की प्रशंसा नहीं सुनता था और उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। राजा हिरण्यकशिप अपने पुत्र के इष्ट के अपमान का कोई अवसर नहीं छोड़ता था किन्तु प्रह्लाद की भक्ति बढ़ती गई।
राजा हिरण्यकशिप की बहन होलिका को वरदान दिया गया था जिससे वह अग्निरोधक बन गयी थी। हिरण्यकश्यप का इरादा इस शक्ति का उपयोग कर प्रह्लाद को धोखे से होलिका की गोद में बैठाकर उसकी हत्या करने के लिए करना था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को चुनौती दी कि वह अग्नि पर बैठे और यदि उसके भगवान में शक्ति है तो वह उसे बचाएंगे। , वह प्रचंड अग्नि में प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठी और आग ने प्रह्लाद को नुकसान नहीं पहुंचाया, लेकिन होलिका को भस्म कर दिया, जो होली के पहले दिन होलिका दहन पर मनाई जाने वाली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
25 मार्च को पूरे देश में रंगों, गुलाल और फूलों से होली मनाई गई। मथुरा और वृन्दावन जैसे कुछ क्षेत्रों में, होली को भगवान कृष्ण और राधा के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। मथुरा के पास बरसाना गाँव की लठ्ठमार होली अत्यंत प्रसिद्ध् है, वाराणसी के मणिकर्णिका घट पर चिताओं की राख से मसान होली मनाई जाती है। फूलों वाली होली खेलने के लिए आज उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर भी फूलवाली होली की मेजबानी करता है। इसके अलावा पुष्कर, आगरा, अयोध्या, दिल्ली, समेत देश के कई भागों में होली के अनेक रंग देखने को मिलते हैं।
यह लोगों के एक साथ आने, अपने मतभेदों को दूर करने और जीवन के उज्ज्वल क्षणों का जश्न मनाने का समय है।