कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) विवाद : क्या है मुद्दा ?

Katchatheevu Island

लोकसभा चुनाव 2024 (lok sabha election 2024) से पहले कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा बनता जा रहा है। 

भाजपा ने तमिलनाडु में कांग्रेस और सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के खिलाफ कच्चाथीवु द्वीप (Katchatheevu Island)  को लेकर एक नया हमला शुरू कर दिया है। प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने डीएमके कीआलोचना करते हुए कहा कि तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी पर राज्य के हितों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए कच्चाथीवु द्वीप (Katchatheevu Island) मुद्दे को गलत तरीके से संभालने का आरोप लगाया।  

कच्चाथीवू द्वीप पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सोशल मीडिया साइट एक्स (पूर्व में ट्विटर)पर किए गए एक ट्वीट के बाद यह मुद्दा इस समय चर्चा में आ गया है। पीएम मोदी ने भारत द्वारा कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका में स्थानांतरित करने के बारे में नए खुलासे को उजागर करने के लिए एक्स का सहारा लिया, जिसे उन्होंने डीएमके के दोहरे मानकों के रूप में वर्णित किया। उन्होंने एक समाचार रिपोर्ट का हवाला देते हुए संकेत दिया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने अपनी पार्टी के सार्वजनिक विरोध के बावजूद समझौते को मंजूरी दे दी थी।

प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा – 

“ये द्वीप भारत का हिस्सा था लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे श्रीलंका(Sri Lanka) को दे दिया। अपनी बयानबाजी के बावजूद, DMK ने तमिलनाडु के हितों की रक्षा के लिए कोई कार्रवाई नहीं की है। # Katchatheevu Island के बारे में हालिया खुलासे ने DMK के पाखंड को पूरी तरह से उजागर कर दिया है। कांग्रेस और DMK पारिवारिक इकाइयों की तरह हैं। वे अपने रिश्तेदारों की उन्नति को प्राथमिकता देते हैं और दूसरों की उपेक्षा करते हैं। ”कच्चातीवू के संबंध में विशेष रूप से हमारे गरीब मछुआरों और मछुआरे महिलाओं को नुकसान हुआ है।”

यह ट्वीट  तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई द्वारा प्राप्त एक आरटीआई प्रतिक्रिया की मीडिया रिपोर्ट पर आधारित है जिसमें कहा गया है प्रधान मंत्री के रूप में इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान भारत और श्रीलंका के बीच 1974 के समझौते के बारे में पूछताछ की गई थी। समाचार पत्र के अनुसार भारतीय जनता पार्टी के तमिलनाडु अध्यक्ष  के.अन्नामलाई के द्वारा ताज़ा आरटीआई रिपोर्ट का सार दो पहलुओं को शामिल करता है। 

एक आधिकारिक “फ़ाइल नोटिंग्स” से संबंधित था जिसमें दर्ज किया गया था कि प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू इस द्वीप को कोई महत्व नहीं दे रहे थे और द्वीप से अलग होने की उनकी इच्छा थी। दूसरा, जिसने “करुणानिधि के विश्वासघात” को प्रदर्शित किया, वह था केंद्र सरकार द्वारा चर्चा करना और द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के प्रस्तावित कदम के बारे में करुणानिधि को अवगत कराना। 

क्या है कच्चाथीवु द्वीप (Katchatheevu Island) विवाद ?

कच्चाथीवू द्वीप विवाद  भारत और श्रीलंका के बीच एक पुराना विवाद है। यह विवाद मुख्य रूप से दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक समझौतों और संधियों की अलग-अलग व्याख्याओं के कारण उत्पन्न हुआ।

कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) कहाँ स्थित है?

285 एकड़ का यह द्वीप भारत से 33 किमी दूर, रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में श्रीलंका की सीमा के भीतर स्थित है। यह स्थान 110 साल पुराने सेंट एंथोनी चर्च के लिए प्रसिद्ध है, जहां कथित तौर पर हर साल रामेश्वरम से 5,000 से अधिक श्रद्धालु आते हैं।

कच्चाथीवू द्वीप का इतिहास क्या है?

द्वीप का सबसे पुराना ज्ञात नाम, काची (आधुनिक कक्कातिवु), का उल्लेख श्रीलंका के राजा निसांका मल्ल (1187-1196 ई.) के रामेश्वरम शिलालेख में, पुवागु (आधुनिक पुंगुदुतिवु), मिनिनाक (मणिनागा), और कारा (आधुनिक करैतिवु) सहित आसपास के अन्य द्वीपों के साथ किया गया है। शिलालेख में कहा गया है कि निसांका मल्ल ने अपने क्षेत्र के अभियानों के दौरान इन द्वीपों का दौरा किया था।

ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि कच्चातिवु द्वीप पुर्तगाली, डच और ब्रिटिश काल में श्रीलंका के अधिकार क्षेत्र में रहा है।1920 से ब्रिटिश कभी-कभी इस द्वीप को नौसैनिक तोपखाने अभ्यास रेंज के रूप में उपयोग करते थे। मध्ययुगीन काल के दौरान, पम्बन द्वीप के साथ यह द्वीप जाफना साम्राज्य के कब्जे में था। 17वीं शताब्दी के बाद से यह द्वीप रामनाद साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था जो भारत के मदुरै (मदुरा) जिले या क्षेत्र में मौजूद था। बाद में, भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश शासन के साथ, यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया।

श्रीलंकाई और भारतीय ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकारों के बीच इस द्वीप पर विवाद 1920 में पैदा हुआ। भारतीय दृष्टिकोण यह था कि यह द्वीप भारत का हिस्सा था क्योंकि यह रामनाद के राजा के जमींदार की संपत्ति था, वहीं श्रीलंका के ब्रिटिश राजनाइक  बी. होर्सबर्ग ने इस दृष्टिकोण का विरोध किया और सबूतों का हवाला दिया कि द्वीप पर सेंट एंथोनी चर्च के साथ कच्चाथीवू द्वीप सेंट एंथोनी चर्च के साथ कच्चाथीवू द्वीप जाफना डाइओसीस का था। 1921 तक, दोनों पक्ष एक सीमा पर सहमत हुए जिसने इस द्वीप को श्रीलंकाई क्षेत्र के भीतर डाल दिया।

इंदिरा गांधी की सरकार ने वर्ष 1974 में   भारत सरकार और श्रीलंका के बीच हुए समझौते के तहत कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। उस समय, इस समझौते का मुख्य ध्येय यह था कि इस निर्जन द्वीप को श्रीलंका को देने से पड़ोसी देश के साथ अच्छे संबंध बने रहेंगे।

1974 में, ‘भारत-श्रीलंकाई समुद्री समझौता’ नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जहां इंदिरा गांधी ने भारतीय मछुआरों के लिए कुछ रियायतों के साथ कच्चाथीवू को श्रीलंका को सौंप दिया था। तब कथित तौर पर यह सोचा गया था कि इस द्वीप का राजनीतिक महत्व बहुत कम है और भारत के दावे को समाप्त करने से श्रीलंका के साथ संबंधों में सुधार होगा।

इस द्विपक्षीय समझौते के माध्यम से कच्चाथीवू का प्रशासनिक नियंत्रण श्रीलंका को सौंप दिया। हालाँकि, समझौते में समुद्री सीमाओं के मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया, जिससे मछली पकड़ने के अधिकार, समुद्री सीमाओं और क्षेत्रीय संप्रभुता पर असहमति जारी रही। इससे, खासकर भारतीय मछुआरों द्वारा श्रीलंकाई सीमा में प्रवेश और मछली पकड़ने को लेकर तनाव पैदा हो गया।

हालांकि, तमिलनाडु में इस समझौते का विरोध की हमेशा से होता रहा है। उस समय के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने विधानसभा में इसका विरोध किया था। इसके बाद, जयललिता सरकार ने भी विधानसभा में कच्चाथीवू के बारे में प्रस्ताव पेश किया और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक ले गई। श्रीलंका का इस मुद्दे पर बहुत ही आक्रामक रवैया रहा है और उसने बीते वर्षों में लगभग सात हजार भारतीय मछुआरों को समुद्री सीमा के उल्लंघन पर गिरफ्तार किया है, साथ ही एक हजार से अधिक भारतीय मछुआरों की फिशिंग बोटों को भी सीज किया है।

कच्चाथीवू पर तमिलनाडु की स्थिति क्या है?
राज्य का कहना है कि समझौता तमिलनाडु विधानसभा से परामर्श किए बिना किया गया था। श्रीलंकाई नौसेना द्वारा तमिल मछुआरों की लगातार गिरफ्तारी और उत्पीड़न के साथ कच्चाथीवू पुनर्प्राप्ति मुद्दा अन्नाद्रमुक और द्रमुक के बीच गहन बहस का विषय रहा है। कथित तौर पर भारतीय ट्रॉलर नाराज हैं क्योंकि वे न केवल जरूरत से ज्यादा मछली पकड़ते हैं बल्कि श्रीलंकाई मछली पकड़ने के जाल और नौकाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

दिवंगत अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता ने एक बार मछुआरों की परेशानियों को समाप्त करने के लिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की कसम खाई थी और उनकी पार्टी ने हमेशा इसे रोकने के लिए कुछ नहीं करने के लिए द्रमुक को दोषी ठहराया था, हालांकि उन्होंने 1974 में सत्ता की बागडोर संभाली थी।

कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं :

श्रीलंका के मीडिया में हो रही प्रतिक्रिया : 

श्रीलंकाई सरकार ने कच्चाथीवू द्वीप के संबंध में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के हालिया बयानों पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन स्थानीय मीडिया ने इस मामले पर आलोचनात्मक रुख अपनाया है।

कोलंबो स्थित अंग्रेजी अखबार डेली मिरर ने एक संपादकीय में कहा, “अफसोस की बात है कि यह प्रतीत होता है कि अडिग दिखने वाले भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने राजनेता होने का दिखावा छोड़ दिया है और सांप्रदायिक भावनाओं को जगाने की उम्मीद में अपने प्रधान मंत्री से हाथ मिला लिया है।” तमिलनाडु में कुछ वोट हासिल करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं।” 

डेली फाइनेंशियल टाइम्स ने “कच्चाथीवू द्वीप भारत के लिए ऐसा नहीं था जिसे छोड़ दिया जाए” शीर्षक से एक संपादकीय में, टिप्पणियों को “तथ्यों की विकृति, दक्षिण भारतीय राष्ट्रवाद के अनावश्यक उकसावे और गंभीर परिणामों के रूप में वर्णित किया गया है।”

 

विपक्ष ने भी साधा निशाना : 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कच्चाथीवू मुद्दे पर पीएम मोदी के ट्वीट पर तीखी प्रतिक्रिया दी 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि सत्तारूढ़ भाजपा ने कच्चाथीवू द्वीप मुद्दे पर जान बूझकर ऐसा किया है क्योंकि चुनाव नजदीक हैं। एक चुनावी रैली में स्टालिन ने कहा कि भाजपा सरकार और पीएम मोदी में मछुआरों की गिरफ्तारी के लिए  मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश या श्रीलंका पर अपने दावों के लिए चीन का मुकाबला करने का साहस नहीं है।

डीएमके अध्यक्ष ने  कहा कि केंद्र सरकार द्वारा आरटीआई अधिनियम के तहत किए गए खुलासे “गलत जानकारी” हैं। उन्होंने सवाल किया कि सरकार भाजपा से जुड़े एक व्यक्ति – भाजपा के तमिलनाडु राज्य प्रमुख के अन्नामलाई को आरटीआई अधिनियम के तहत देश की सुरक्षा से संबंधित ‘गलत जानकारी’ कैसे दे सकती है।

स्टालिन ने दावा किया कि भाजपा ने स्वयं 2015 में कहा था कि कच्चाथीवू कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था और यह जानकारी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दी थी, जो उस समय विदेश सचिव थे। उन्होंने आगे कहा “अब चूंकि चुनाव नजदीक हैं, इसलिए उन्होंने अपनी इच्छानुसार जानकारी बदल दी है। यह कलाबाज़ी क्यों?

प्रधान मंत्री मोदी अब कच्चाथीवू पर बात कर रहे हैं,  लेकिन अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान कभी मछुआरों की गिरफ्तारी और उनके ख़िलाफ़ गोलीबारी की घटनाओं पर कभी श्रीलंका की निंदा करने का साहस क्यों नहीं कर पाए ?” डीएमके प्रमुख ने पीएम मोदी की 2022 की श्रीलंका यात्रा का भी जिक्र किया और पूछा कि क्या उन्होंने श्रीलंका को बताया कि यह द्वीप भारत का है। स्टालिन ने कहा, “मोदी को अपनी विदेश यात्रा के दौरान कच्चाथीवू की याद क्यों नहीं आई ? “

2022 में, जब पीएम मोदी ने चेन्नई का दौरा किया था, तो स्टालिन ने दावा किया था कि उन्होंने कच्चाथीवू को पुनः प्राप्त करने की मांग की थी। उन्होंने पीएम मोदी का जिक्र करते हुए पूछा, “क्या आपको वह याद है?” उन्होंने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि केंद्र ने इतने महत्वपूर्ण मामले पर चार कार्य दिवसों के भीतर जानकारी कैसे दे दी।

पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने की विदेश मंत्री की आलोचना :

काँग्रेस नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को देने के समझौते का बचाव करते हुए  कहा कि यह समझौता 1974 और 1976 में लंबी बातचीत के बाद हुआ था। “पीएम मोदी एक हालिया आरटीआई जवाब का जिक्र कर रहे हैं, उन्हें 27 जनवरी 2015 के आरटीआई जवाब का जिक्र करना चाहिए, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर विदेश सचिव थे। उस जवाब में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बातचीत के बाद, द्वीप श्रीलंका के हिस्से में है।

चिदंबरम ने कहा कि कच्चाथीवु द्वीप (Katchatheevu Island) का क्षेत्रफल 1.9 वर्ग किमी है और वहीं  “चीन ने 2000 वर्ग किमी भारतीय भूमि हड़प ली है। इस पर विरोध करना तो दूर उल्टा मोदी ने यह कहकर चीन की आक्रामकता को उचित ठहराया कि ‘भारत की धरती पर कोई चीनी सैनिक नहीं है’ और चीन ने श्री मोदी के भाषण को दुनिया भर में प्रसारित किया।” “चीन ने सरेआम जो ज़मीन हड़पी है वो समझौते से दिए गए एक छोटे से द्वीप से 1000 गुना बड़ी है।” कांग्रेस के दिग्गज नेता ने कहा कि ‘परोपकारी आदान-प्रदान एक बात है, दुर्भावनापूर्ण ज़ब्ती दूसरी बात है।’

चिदम्बरम ने कहा कि 27 जनवरी, 2015 को विदेश मंत्रालय का जवाब इस मामले को पूरी तरह से समाप्त करता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा, “आप 50 साल बाद यह मुद्दा क्यों उठा रहे हैं? आप इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं कि 2-3 साल में क्या हुआ?”

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